Friday, April 9, 2010

रीशते


जैसा की आप सभी जानते है
की रीश्तो की व्याख्या बहुत ही मुश्कील प्रश्न है.....
फीर भी आज के दौर मे रीश्ते क्या हो गये है,
इस विषय पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयास कीया है.....
नीदा फाज़ली साहब की एक रचना से प्रेरित हो कर लिखी है.......
कच्चे बखीये की तरह उधडते रीश्ते,
दील के मीलाने के बाद बीछ्दते रीश्ते...
दूरीयां करने लगे थे कम हम भी,
रोज़ मीलाने से लगे उखडने रीश्ते...
मोम के बुत क्यूँ बन गये है हम,
धूप मे फीर लगे पीघलने रीश्ते...
शहर की भीड मे अकेला हूँ,
मेरी बेखयाली मे उजड गये रीश्ते.....

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